भारत
में CAB और
NRC के
मायने
और नागरिकों पर इन
का प्रभाव
अब्दुल्लाह अल्काफ़ी अलमुहम्मदी
दिनांक: 19/ 04/ 1441 ह. दिन: सोमवार, मुताबिक: 16/ 12/ २०19 ई.
भारत
लोकतंत्र
सिद्धांतों पर
आधारित
अनेकता
में
एकता
का
प्रतीक
है. और
यही
इस
की
भव्यता
महानता
और
सुंदरता
है. एक
समान
नागरिकों
की
हितों
का
रक्षा
करने
वाला
संविधान
है. जो
किसी
भी
प्रकार
का
भेद
भाव
नहीं
करता।
भारत
को
सभी
नागरिकों
के
सामूहिक
संघर्षों
के
बाद
१९४७
में
ब्रिटिश
शासन
से
स्वतंत्रता प्राप्ति
हुई. परन्तु
आज़ादी
के
बाद
भारत
२
भाग
में
खंडित
हो
गया. एक
हिन्दू
बहुल
भारत, और
दूसरा
मुस्लिम
बहुल
पाकिस्तान।
पाकिस्तान दो अलग
अलग पस्च्मि और पूरबी छोर में स्थापित हुआ. बहु मुस्लिम छेत्र होने के कारण बांग्ला
भाषी अपनी मर्ज़ी से पाकिस्तान में शामिल हुए. जो की बाद में स्वतंत्र बांग्ला देश बना।
विभाजन के समय कई प्रान्त
और राजे रजवाड़े थे, उन को आज़ादी थी की
यदि वह चाहें तो अलग स्वतंत्र देश रहें। और चाहें तो भारत या पाकिस्तान के साथ सम्मिलित
हो जाएँ। उस समय हैदराबाद और कश्मीर जैसे कई मुस्लिम बहुल प्रान्त भी भारत
के साथ जुड़ गए।
पाकिस्तान क्योंकि धर्म के
आधार पर स्थापित हुआ, इसलिए विभाजन के समय
पाकिस्तान से कुछ गैर मुस्लिम भारत आ गए. और भारत से कुछ थोड़े मुस्लिम पाकिस्तान चले
गए, परन्तु जो मुस्लिम भारत में
रह गए वह पाकिस्तान की कुल आबादी से कहीं अधिक थे,
इन्हों ने भारत को ही अपना जन्म भूमि कर्म भूमि और मात्र भूमि
मानते हुए यहीं रहने का फैसला किया।
विभाजन के पहले से भारत में
रह रहे भारतीय मूल निवासी अथवा जो विभाजन के समय पाकिस्तान व बांग्लादेश से आए. संविधान
अनुसार बिना किसी के वह सभी भारतीय नागरिक हैं।
भारत में १९५१ की जनगणना के
बाद पाकिस्तान अथवा बांग्लादेश से आने वालों में कुछ तो वैध या समय सीमा समाप्त पासपोर्ट
और वीजा धारक हैं. और कुछ ने अवैध रूप से घुसपैठ किया है।
जिन लोगों ने वैध रूप से भारत
में प्रवेश किया है. और भारत की नागरिकता के लिए अपना आवेदन पत्र दाखिल किया है. उन
की सठिक संख्या पता नहीं. परन्तु संविधान अनुसार उन में से हजारों या लाखों को नागरिकता
दी गई है. और इसका प्रावधान संविधान में है।
अब जानते हैं की CAB किया है?
तो यह (Citizenship
Amendment Bill) अथवा एक नागरिकता संसोधन बिल
है, जिस के अंतर्गत धार्मिक उत्पीड़न
के कारण ३ देशों अफगानिस्तान पाकिस्तान या बांग्लादेश के ६ प्रकार के अल्पसंख्यक समुदाय,
हिन्दू, बौद्ध,
जैन, सिख,
क्रिस्चियन, और पारसी को बिना
किसी वैध डॉक्यूमेंट के भारतीय नागरिकता दी जाएगी।
ज्ञात रहे की इस अध्यादेश
के अंतर्गत केवल ३ देशों (अफगानिस्तान पाकिस्तान या बांग्लादेश) से ६ प्रकार के (हिन्दू,
बौद्ध, जैन,
सिख, क्रिस्चियन,
और पारसी) अल्पसंख्यक समुदाय आएंगे जो २०१४ से पहले वैध (पासपोर्ट
वीजा) रूप से या अवैध (वीजा समय समाप्त के बाद भी रह रहे,
और बिना सरकार को सूचित किए चोरी चोरी) रूप से भारत में प्रवेश
किए हैं।
इस विधेयक के अनुसार असम के
१४ लाख गैर मुस्लिम जिन का नाम NRC में नहीं आया है,
उन सभी को बिना किसी डॉक्यूमेंट के भारतीय नागरिकता प्राप्त
हो जाएगी। वंचित रह जाएगा ६ लाख मुस्लिम, इन्ही पर मुकदमा चलेगा,
इन्ही के नसीब में डिटेंशन कैंप होगा।
यह भी ज्ञात रहे की आर्टिकल
१४ द्वारा भारतीय संविधान अनुसार भारतीय नागरिकता में जात पात रंग धर्म इत्त्यादि किसी
भी भेद भाव को वर्जित माना गया है।
अब प्रश्न उठता है की:
o
आखिर इस अध्यदेश की
क्या आवश्यक्ता थी?
o
जब पहले से नागरिकता
देने का प्रावधान है, नागरिकता दी भी जा
रही है. तो इस अध्यादेश से ऐसा क्या अलग हो जायेगा जो पहले नहीं होता था?
o
और धार्मिक उत्पीड़न
के क्या माप डंड हँगे?
o
धार्मिक उत्पीड़न को
कैसे प्रमाणित किया जाएगा?
o
यदि अल्पसंख्यक का
धार्मिक उत्पीड़न ही नागरिकता दिए जाने का कारण है, तो रोहिंग्या श्रीलंका चाइना
इत्त्यादि देशों के धार्मिक उत्पीड़न ग्रस्त मुस्लिम अल्पसंख्यक को क्यों नहीं?
o
क्या इस प्रकार के
अध्यादेश से केवल मुस्लिम को वंचित करना, अथवा नागरिकता में धार्मिक भेद भाव को नहीं दर्शाता है, जो की भारतीय संविधान का उल्लंघन
है?
इन सब के बाद स्पष्ट रूप से
यह सिद्ध हो जाता है की यह अध्यादेश:
o
भारतीय संविधान के
आर्टिकल १४ का खुला उल्लंघन है।
o
भारत के मूलभूत संविधान
को बदलना, और लोकतंत्र की जगह धर्म विशेष का पक्षपात करना है।
o
इस अध्यादेश की कोई
आवश्यकता नहीं थी. क्योंकि इन समुदायों को नागरिकता देने में किसी को मतभेद नहीं है।
o
इस विधेयक से मुस्लिम
समुदाय के प्रति घृणा और उसे दोयम दर्जे का नागरिक दर्शाता है।
o
यह अध्यादेश स्पष्ट
रूप से राजनीती और ध्रुवीकरण से प्रेरित है।
अब आते हैं NRC
को ओर:
दर असल NRC
(National Register of Citizens) भारतीय नागरिक पंजीकरण
को कहते हैं. पहली बार १९५१ में जनगणना की गई थी. इस लिए अब प्रत्येक नागरिक को प्रमाणित
करना होगा की वह या उस के पूर्वज १९५१ से पहले से भारत में हैं. जो वयक्ति १९५१ से
पहले भारत में पैदा हुआ है. उस को अपने बारे में निर्धारित डॉक्यूमेंट द्वारा यह प्रमाण देना होगा. और जिसका जन्म भारत
में १९५१ के बाद हुआ है. उस को अपनी वंशावली प्रमाणित करनी होगी. और पूर्वजों के १९५१
के पहले से भारत के अंदर होने को साबित करना होगा।
यह तो संविधान का एक भाग है.
यह देश हित में और एक अवश्य कदम है. परन्तु इस को करने के तोर तरिके पर सोच विचार ज़रूरी
है.
बहुत से भारतीयों के पास पुरखों
की ज़मीन जायदाद नहीं है, वह कैसे प्रमाणित
करेंगे? राशन कार्ड तो १९६७
में आरम्भ हुआ है. यह भी प्रमाण के लिए काफी नहीं है. वोटर ID
आधार कार्ड इत्त्यादि यह सब तो अभी की पैदावार हैं. जन्म प्रमाण
पत्र भी उस समय नहीं था, गरीब मजदूर पढता कहाँ
है की सर्टिफिकेट लाए. कुल मिला कर स्थिति बहुत गंभीर है. करना आवश्यक है. परन्तु है
बहुत मुश्किल काम. इस लिए इस पर गहन सोच विचार की ज़रूरत है.
न तो किसी भी घुसपैठिए के
लिए खुली छूट रहे. और न मूल निवासीयों को काम काज छोड़ छाड़ के लाइन में लगा दिया जाए.
ऐसे काम के लिए जो उन से होना मुहाल है.
यदि सरकारें अपनी जिम्मेदारियों
का पालन करते हुए घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें देश से निकाले। और वोटर ID
कार्ड, आधार कार्ड इत्त्यादि दुवारा धीरे धीरे कुछ वर्षों में
नागरिकता पंजीकरण को पूरा कर ले तो यह संभव भी है और अच्छा भी है.
अब्दुल्लाह अल्काफ़ी अलमुहम्मदी
दिनांक: 19/ 04/ 1441 ह. दिन: सोमवार
मुताबिक: 16/ 12/ २०19 ई.